कोई 3 महीने पहले आर.जी.पी.वी. की सेमेस्टर परीक्षाओं के समाप्त होने पर ये लिखा था---
" भटकता मन भटकता मस्तिष्क आज फिर भाव्विभूत है...
" भटकता मन भटकता मस्तिष्क आज फिर भाव्विभूत है...
समय चक्र पर प्रगति पथ पथ पर यह ढूंढे जीवन- दूत है"....
एल.एन.सी.टी. की छुट्टियां औए बेरंग गुजरते दिन.... सायनाइड की तलाश में भटकता मन...
इसके अलावा ये भी लिखा था---
" i know that the world is not going to be end by the end of 2012 but i will do something which will be my end"...
एल.एन.सी.टी. की छुट्टियां औए बेरंग गुजरते दिन.... सायनाइड की तलाश में भटकता मन...
इसके अलावा ये भी लिखा था---
" i know that the world is not going to be end by the end of 2012 but i will do something which will be my end"...
अब
इन चीजों को मैंने मोबाइल में टाइप किया और कुछ लोगो को मैसेज कर दिया...
पता नहीं कुछेक ने इसे क्या समझा और मुझे टेंशन दे डाली...
खैर. ऐसी फ़ालतू लाइन लिख बैठता हूँ जब कभी छुट्टियां साथ होती है मेरे.. अभी अपने होमटाउन गया था पिछले महीने.. होली मनाने के बहाने को साथ लेकर और साथ में एक झूठी उम्मीद भी लेकर गया था एक खोयी तस्वीर को तलाशने के इरादे से...
अब ये मेरी अंध-आस्था है या " सोने को गिरवी रखकर कर्ज लेने की आदत" जो मेरा पीछा नहीं छोडती..
मैं एक आशावादी इंसान हूँ, ऐसा मुझे लगता है... पिछले कुछ समय से मैंने कोशिश की थी १०-१२ साल के अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ने की... कई पुराने चेहरे मिले और उनका साथ भी छूटता रहा, या यूँ कह दूँ की उनका साथ पूरी तरह छूट गया..
खैर. ऐसी फ़ालतू लाइन लिख बैठता हूँ जब कभी छुट्टियां साथ होती है मेरे.. अभी अपने होमटाउन गया था पिछले महीने.. होली मनाने के बहाने को साथ लेकर और साथ में एक झूठी उम्मीद भी लेकर गया था एक खोयी तस्वीर को तलाशने के इरादे से...
अब ये मेरी अंध-आस्था है या " सोने को गिरवी रखकर कर्ज लेने की आदत" जो मेरा पीछा नहीं छोडती..
मैं एक आशावादी इंसान हूँ, ऐसा मुझे लगता है... पिछले कुछ समय से मैंने कोशिश की थी १०-१२ साल के अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ने की... कई पुराने चेहरे मिले और उनका साथ भी छूटता रहा, या यूँ कह दूँ की उनका साथ पूरी तरह छूट गया..
हकीकत बयान करूँ तो यह बात सामने आती है कि. मुझे
भी खुद को बदलना चाहिए था, बदलते वक़्त के साथ लेकिन शायद ऐसा संभव नहीं
हो पाया.....
मेरे लिया सारी सुनहरी यादें भयावह
दु-स्वप्न बन गयी, ये बातें मुझे कल कि तारीख तक काफी इमोसनल लग रही थी कल
कि तारीख तक लेकिन आज नहीं... अच्छा हुआ कि अतीत से संपर्क साधने के
तमाम रास्ते मैंने कल खुद ही मिटा डाले..अब खुद पर भरोसा है कि दुबारा
मेरे खुद कि तरफ से कभी कोई कोशिश नहीं होगी इस रास्ते पर कदम रखने कि और
झटके खाने कि, और ये नसीहत सुनने की "कि मैं किस हद तक गिर चूका हूँ".. और
फिर मैं वो समझाईश भी नहीं सुन सकता जो किसी भी तरह के अकेलेपन का मुझे
एहसास दिलाये.....