Tuesday 11 October 2011

गजलों का रूह से परिचय आपने करवाया....

कल रात करीब १२:०० बजे मैं अपने  राज्य झारखण्ड से वापस भोपाल आया...  मैंने आते ही अपने कुछ  मित्रो से बात की और फिर यात्रा की थकान के चलते सो गया...   आज सुबह उठने के साथ जब अखबार पर नज़र पड़ी तो देखा की ग़ज़ल सम्राट "जगजीत सिंह  जी " नहीं रहे... 
आज  भले ही  युवाओं की उंगलियाँ लैपटॉप और मोबाइल के की-पैड  पर थिरकती हों, भले ही वो रॉक मयूजिक पसंद करते हो.. पर कभी न कभी उनके दिल  से इन गजलों को सुनने की आवाज जरूर सुनाई देती है मुझे...  किसी ने एक बार जगजीत सिंह जी से पुछा था की "आप युवाओं से इतना क्यों घिरे रहते हैं?" उनका कहना था की- बाबु (विवेक) ऊपर चला गया है और वह अपने दोस्तों से कहता होगा की मेरे पापा को अकेला मत छोड़ना .. इसलिए ये सब मेरा ख्याल रखने चले आते हैं मेरे पास..   
अपने पुत्र के मरने के बाद इनके गाए गजलों में और भी दर्द सुनाई  देते हैं..
जगजीत सिंह के ग़ज़ल ऐसे हैं जो आंसू और मुस्कान दोनों देते हैं और कभी - कभी तो ये साथ साथ आ जाते हैं... उनके गजलों ने हमे ज़िन्दगी का अर्थ और मतलब दोनों समझाया है...
 जब से मैं भोपाल आया देखा की यहाँ  गजलों और शायरों को काफी पसंद किया जाता है... मेरे भाई साहब के कुछ  मित्रो  और मेरे एक परम मित्र  "आदरणीय सुजीत कुमार बिमल जी " के संपर्क में रहने के बाद भी इनकी ओर काफी हद तक मुखातिब  हुआ मैं..  
अभी जगजीत सिंह जी २८ सितम्बर को भोपाल भी आने वाले थे अपने किसी ग़ज़ल के सिलसिले में और यहाँ भारत भवन के मंच  पर उनका  ग़ज़ल का कार्यक्रम भी तय किया गया था, पर वो केवल तय ही रह पाया और केवल  एक गुमनाम तारीख में सिमट कर  रह गया....
उनके द्वारा गाया गया ग़ज़ल-- "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो, भले छिन  लो मुझसे मेरी जवानी.... ये एक ऐसा ग़ज़ल है जिसकी ऊँगली पकड़कर कोई भी अपनी बचपन की यादों में पहुँच जाता है...  ऐसे अनेक ग़ज़लों को मूर्त रूप दिया है जगजीत सिंह जी ने..  "होंठो से छू लो तूम मेरा गीत अमर कर कर दो" .... इसके अलावे और भी तमाम ग़ज़ल  जिनकी कोई गिनती नहीं है..
ये भारत के एक ऐसे सितारे रहे जिन्हें संगीत और ग़ज़ल की दुनिया में आने वाली कई पीढियां भी ताउम्र नहीं भूला पाएंगी...   

No comments:

Post a Comment