Friday 9 December 2011

तुम्हे भूलकर क्यों न जियूँ.....

क्यूँ न तड़पूं तुम्हारी आवाज सुनने की खातिर...
इसी आवाज की कशिश ने वर्षों तड़पाया  है मुझे....
तुम्हे भूलकर क्यूँ न जियूँ ....
कि तुमने भी तो भूलाया है मुझे...

आँखों  में नींद नहीं रहती थी, रहते  थे सिर्फ तुम्हारे ख्वाब...
इन्हीं  ख्वाबों ने ही  तो वर्षों बहलाया है मुझे ......
कैसे  टूट जाने दूँ इन ख्वाबों को , जिन्होंने  तुम्हारे  साथ का एहसास दिलाया है मुझे....
तुम्हे भूलकर  क्यूँ न जियूँ.....
कि तुमने भी तो भूलाया है मुझे.......

तुम्हारी तस्वीर का दीदार भी अब सुकून नहीं देता....
कि कतरा-कतरा रूलाया है मुझे....
मेरी ख्वाहिशे, मेरे अरमान सब धुंधले पड़ गए थे...
जाने अनजाने तुम्हीं  ने  अब भड़काया है इन्हें ....
तुम्हें भूलकर क्यूँ न जियूँ ....
कि तुमने भी तो भूलाया है मुझे.....

क्या कहूँ तुम्हारे बारे में .....
यही न --- कि तुम तो पहले से पत्थर दिल थी....

तुम तो पहले से पत्थर दिल थी....
अब पत्थर दिल बनाया है मुझे....
तुम्हें भूलकर क्यूँ न जियूँ ....
कि तुमने भी तो भूलाया है मुझे...
                                             

1 comment:

  1. ekdam naya angle.....sach hai kyu chor diya jae jeena....bahut accha

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